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यह कह पाना
दरअसल उतना ही दुखद है
जितना कि ये विचार,
कि यह समय कुंद विचारों से जूझती
मानसिकताओं का है
हालाँकि इसे सीमित समझ का नाम देकर
खारिज करना आसान है,
पर हमारी कल्पनाओं से परे,
बहुत परे है
आज के समय की तमाम जटिलताएँ,
पहाड़ से दुखों तले मृत्यु से जूझते हजारों शरीर
और हृदयहीनता के क्रूर मंजर से भयभीत,
विचलित आत्माएँ
आधुनिक जीवन के पर्व, उल्लास और उत्सव
और पल पल मृत संख्याओं में
बदलने को अभिशप्त जिजीविषाएँ,
यदि यह दुःस्वप्न नहीं
तो यह किस युग का सच हैं
सचमुच यह समय हमारी कल्पनाओं से परे,
बहुत परे है...
मौत अब पल भर भी हमें ठिठकाती नहीं
और बुद्धू बक्से पर कड़वी खबरों के
हर वीभत्स दृश्य के साथ गले से निर्बाध
उतरते हैं लजीज डिनर के निवाले,
जब तब सनसनी के झटको से बोझिल
मृतप्राय संवेदनाएँ
सहज ही ओढ़ लेती हैं उदासीनता का दुशाला
और सोच के वृत्त में
चक्कर लगाता है ये विचार
आखिर हम किस बात से चौंकते हैं,
सुन्न पड़ी शिराएँ,
धीमा होता रक्तचाप,
शिथिल चेतनाएँ
अगर हमारा आज है तो चेत ही जाइए
सचमुच यह समय हमारी कल्पनाओं से परे,
बहुत परे है...
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